नागार्जुन- वैद्यनाथ मिश्र - वैद्यनाथ मिश्र जी का जन्म 30 जून 1911 को भारत के बिहार के दरभंगा जिले के तरौनी गाँव में हुआ था, उन्होंने अपना अधिकांश जीवन बिहार के मधुबनी जिले के सतलखा गाँव में बिताया। बाद में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया और अपनी दीक्षा के बाद नागार्जुन नाम अपना लिया। उन्होंने पाँच वर्ष की छोटी सी उम्र में अपनी माँ को खो दिया था। वे गरीबी और अभाव में पले थे। उनके पिता एक पुरोहित थे और आस पास के गाँव में पूजा-पाठ जैसे गृह प्रवेश और अन्य अनुष्ठान करवाया करते थे। पूजा पाठ से उतनी आय नहीं हो पाती थी कि वे अपने बेटे का उचित पालन कर पाते और उन्होंने युवा वैद्यनाथ को अपने रिश्तेदारों के हाथों में सौंप दिया और उन्हीं की छत्र छाया में वे आगे बढ़े। वे एक असाधारण छात्र थे और उनकी अधिकांश शिक्षा छात्रवृत्ति जीतकर पूरी की। उन्होंने संस्कृत, मैथिली, हिंदी और प्राकृत भाषाओं में निपुणता प्राप्त की। उन्होंने पहले स्थानीय स्तर पर और बाद में वाराणसी और कलकत्ता में पढ़ाई की। उन्नीस साल की उम्र में उनका विवाह अपरिजिता जी से हो गया। नागार्जुन जी ने 1930 के दशक की शुरुआत में यात्री नाम से मैथिली कविताओं के साथ अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत की। 1930 के दशक के मध्य तक, उन्होंने हिंदी में कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। शिक्षक के रूप में अपनी पहली स्थाई नौकरी के लिए वो सहारनपुर चले गए, हालाँकि वे वहाँ लंबे समय तक नहीं रहे। वे राहुल सांकृत्यायन को अपना गुरु मानते थे और उन्हीं के प्रभाव में बौद्ध ग्रंथों को गहराई से जानने की उनकी इच्छा उन्हें श्रीलंका ले गई। १९३५ तक वे श्रीलंका के केलनिया के एक बौद्ध मठ में बौद्ध भिक्षु बन चुके थे। उन्होंने मठ में प्रवेश किया और बौद्ध शास्त्रों का अध्ययन किया, जैसा कि उनके गुरु, राहुल सांकृत्यायन ने किया था। बौद्ध धर्म कि दीक्षा लेके के बाद उनका नाम "नागार्जुन" पड़ गया। 1938 में प्रसिद्ध किसान नेता और किसान सभा के संस्थापक सहजानंद सरस्वती, द्वारा आयोजित 'समर स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स' में शामिल होने से पहले उन्होंने लेनिनवाद और मार्क्सवाद विचारधाराओं का गहराई से अध्ययन किया। स्वभाव से घुमक्कड़ नागार्जुन ने 1930 और 1940 के दशक में भारत भर में यात्रा करते हुए आम लोगों के जन जीवन और कठिनाइयों को करीब से ...