महादेवी वर्मा - आधुनिक भारत की मीरा हिंदी साहित्य को समय के अनुसार तीन भागों में बांटा जा सकता है, आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल। आधुनिक काल में १९२० से १९३६ के समय को छायावाद बुलाया जाता है। छायावाद के अर्थ को लेकर सभी साहित्यकारों की अपनी परिभाषा रही और कभी मतभेद भी रहा। इतना की इस विषय पर एक पूरा एपिसोड बनाया जा सकता है। फिलहाल आप इतना जानिए की कोई भी रचना जहाँ रचनाकार परोक्ष रूप से कविता या किसी भी रचना में परमार्थ की छवि का आभास कराए तो उसे छायावाद कहते हैं। तो क्या ये एपिसोड छायावाद पर है? नहीं, यह एपिसोड है महादेवी वर्मा के बारे में जो छायावाद के चार मुख्य कवियों में से एक थीं जिन्हें छायावाद के चार स्तंभ भी बुलाया जाता था। वे उन महिलाओं में से थीं जिन्होंने सामाजिक नियमों के विरुद्ध अपना रास्ता खुद बनाया था और जीवन पर्यंत उसी पर चलीं। महादेवी वर्मा का जन्म २६ मार्च 1907 को फ़र्रूख़ाबाद के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। उनकी माता श्रीमती हेमरानी देवी बड़ी धर्म परायण और भावुक महिला थीं। इसके ठीक विपरीत उनके पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा एक विद्वान पुरुष थे जो नास्तिक थे। उन्हें घूमने-फिरने और शिकार का शौक था और वे मांसाहारी थे। पर दोनों को ही संगीत में गहरी रुचि थी जिससे उनकी सुपुत्री अछूती नहीं रहीं। विद्यालय में अपनी प्रारम्भिक शिक्षा के साथ-साथ उन्होंने घर पर ही संस्कृत, अंग्रेज़ी, संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा ली। १९१६ में उनकी शादी के समय उनकी शिक्षा में कुछ समय के लिए विराम लग गया पर जल्दी ही उन्होंने अपनी पढ़ाई दोबारा शुरू कर दी। विवाह के बाद उनके पति श्री स्वरूप नारायण वर्मा लखनऊ मेडिकल कॉलेज के छात्रावास यानि हॉस्टल में रहने लगे। १९१९ में महादेवी जी ने भी क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद में दाखिला लिया और वहाँ के छात्रावास में ही रहने लगीं। महादेवी जी का काव्य जीवन शुरू हुआ १९२१ में जब उन्होंने प्रांत भर में आठवीं की परीक्षा पहले स्थान से उत्तीर्ण की। उस समय आठवीं का वही महत्व था जो आजकल दसवीं की बोर्ड की परीक्षा का होता है। वे सात वर्ष की थीं जब उन्होंने कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। 1925 में जब उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की तब तक वे एक कवयित्री के रूप में खुदको स्थापित ...