रामधारी सिंह दिनकर - विद्रोह के कवि मैं यह दावे से कह सकती हूँ ये कविता तो आपने सुनी ही होगी। 'कृष्ण की चेतावनी' उन कविताओं में से है जिसको परिचय की ज़रूरत नहीं जिसे हर कोई पढ़ना और सुनना चाहता है और जिसे लिखा था रामधारी सिंह जी ने जिन्हें साहित्य जगत में लोग दिनकर के नाम से जानते और बुलाते थे। दिनकर जी का जन्म सिमरिया गाँव के एक भूमिहर ब्राह्मण परिवार में 23 सितंबर 1908 में हुआ था जो ब्रिटिश इंडिया की बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा था। अब यह गाँव, बिहार के बेगुसराय का हिस्सा है। स्कूल में और उसके बाद कॉलेज में उन्होंने हिंदी, संस्कृत, मैथिली, बंगाली, उर्दू और अंग्रेज़ी साहित्य का अध्ययन किया। दिनकर रवींद्रनाथ टैगोर, कीट्स और मिल्टन से काफी प्रभावित थे और उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर जी की रचनाओं का बांग्ला से हिंदी में अनुवाद भी किया। दिनकर जी के काव्य को उनके व्यक्तिगत जीवन के संघर्षों ने और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सामाजिक आक्रोश और राजनैतिक अस्तव्यस्तता ने आकार दिया। वे एक कवि और निबंधकार तो थे ही साथ ही वे एक स्वतंत्रता सेनानी, देशभक्त और विद्वान भी थे। उनकी देशभक्ति उनकी कविताओं में साफ़ झलकती है और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लिखी अपनी राष्ट्रवादी कविताओं की वजह से वे विद्रोह के कवि के रूप में उभरे। उनकी कविता में वीर रस झलकता था, और उनकी प्रेरक देशभक्ति रचनाओं के कारण उन्हें राष्ट्रकवि और युग-चारण के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। वे कई हिंदी कवि सम्मेलनों में जाया करते थे और हिंदी भाषी कविता प्रेमियों के बीच उतने ही लोकप्रिय हुए हैं, जितने रूस में पुश्किन थे। १९२९ में जब दिनकर ने कॉलेज जाना शुरू किया तब गांधीजी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हो चुका था और जगह जगह पर सायमन कमीशन के खिलाफ प्रदर्शन चल रहे थे। दिनकर ने भी शपथ पर हस्ताक्षर किए थे। गांधी मैदान में प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजी सरकार की पुलिस ने लाला लाजपत राय पर अंधाधुंद लाठी बरसानी शुरू कर दी जिससे उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना से पूरे देश में तूफ़ान सा आ गया और दिनकर मन में उम्दा गुस्सा उनकी कविताओं में उतर गया। दिनकर की पहली कविता 1924 में छात्र सहोदर नाम की क्षेत्रीय पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। 1928 में, सरदार वल्लभभाई पटेल ...