चाहे तुम खाओ या पीओ या जो कुछ भी करो, सब परमेश्वर की महिमा के लिए करो . . .। वचन या कार्य से जो कुछ करो, सब प्रभु यीशु के नाम से करो और उसके द्वारा परमेश्वर पिता का धन्यवाद करो। (1 कुरिन्थियों 10:31; कुलुस्सियों 3:17) जब आप सवेरे उठते हैं और नए दिन का सामना करते हैं तो आप अपने दिनभर की आशा के विषय में स्वयं से क्या कहते हैं? जब आप दिन के आरम्भ से लेकर दिन के अन्त को देखते हैं, तो आप क्या चाहते हैं कि किन बातों को पूरा हो जाना चाहिए था क्योंकि अब आप वह दिन व्यतीत कर चुके हैं? यदि आप कहते हैं कि, “मैं तो ऐसा सोचता ही नहीं हूँ। मैं तो केवल उठता हूँ और वह करता हूँ जो मुझे करना है,” तो आप अपने आप को अनुग्रह के एक मूल साधन से और मार्गदर्शन और सामर्थ्य और फलदायी और आनन्द के स्रोत से पृथक कर रहे हैं। इन पदों के अतिरिक्त भी, बाइबल में यह स्पष्ट है कि परमेश्वर की इच्छा है कि हम ध्यानपूर्वक अपने दिनों में महत्वपूर्ण बातों के लिए लक्ष्य बनाएँ। आपके लिए परमेश्वर की प्रकट इच्छा यह है कि जब आप सुबह उठते हैं, तो आप पूरे दिन लक्ष्यहीन होकर कार्य न करें जिसमें मात्र परिस्थितियों को यह निर्धारित न करने दें कि आपको क्या कार्य करना है, परन्तु आप लक्ष्य बनाएँगे — अर्थात् आप एक निश्चित प्रकार के उद्देश्य पर ध्यान केन्द्रित करिए। यहाँ पर मैं बच्चों, नवयुवकों, और व्यस्कों — विवाहित, अविवाहित, विधवाओं, माताओं और प्रत्येक व्यवसाय और प्रत्येक कार्य के विषय में बात कर रहा हूँ। लक्ष्यहीनता का सम्बन्ध निर्जीवता से है। मैदान में पड़े सूखे पत्ते किसी भी अन्य वस्तु से अधिक हिल सकते हैं और उड़ सकते हैं — अर्थात् कुत्ते से अधिक, बच्चों से अधिक। जब हवा एक दिशा में बहती है तो वे उसी दिशा में उड़ते हैं। जब हवा दूसरी दिशा में चलती है तो वे उस दिशा में उड़ जाते हैं। वे गिरते हैं, उछलते हैं, कूदते हैं, बाड़े को पार करके जाने का प्रयास करते हैं, परन्तु उनके पास कोई लक्ष्य नहीं है। वे हिलते तो बहुत हैं परन्तु उनमें जीवन नहीं है। परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में लक्ष्यहीन होने के लिए नहीं सृजा है, उन निर्जीव पत्तों के समान नहीं जो मैदान में हवा से इधर-उधर उड़ाए जाते हैं। उसने हमें उद्देश्यपूर्ण होने के लिए सृजा है — जिससे कि हमारे पास प्रत्येक दिन के लिए उद्देश्य और ...