• कारवां गुजर गया

  • May 11 2023
  • Durée: 3 min
  • Podcast

कारवां गुजर गया

  • Résumé

  • स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
    लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
    और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।
    कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।

    नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई
    पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई
    पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई
    चाह तो निकल सकी न पर उमर निकल गई

    गीत अश्क बन गए छंद हो दफन गए
    साथ के सभी दिऐ धुआँ पहन पहन गए
    और हम झुके-झुके मोड़ पर रुके-रुके
    उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
    कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
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