मोहिनीअट्टम: मोहिनीअट्टम भी केरल राज्य का एक शास्त्रीय नृत्य है, जो अभी भी काफी लोकप्रिय है। मोहिनीअट्टम को इसका नाम पुराणों में वर्णित भगवान् विष्णु के मोहिनी अवतार से मिला है। मोहिनी - अट्टम यानि मोहिनी का नृत्य। मोहिनी का शाब्दिक अर्थ है मन को मोह लेन वाली और अट्टम का अर्थ है नृत्य। भरतनाट्यम की तरह मोहिनीअट्टम की जड़ें भी भरत मुनि के नाट्य शास्त्र से जुड़ी हैं। नाट्य शास्त्र में भगवान् शिव के रौद्र रूप में किए नृत्य, तांडव तथा कोमल, भाव भंगिमाओं से युक्त लास्य नृत्य शैलियों का वर्णन है। मोहिनीअट्टम लास्य शैली का नृत्य है। मोहिनीअट्टम का इतिहास स्पष्ट नहीं है। केरल के जिस क्षेत्र में यह नृत्य शैली विकसित हुई और लोकप्रिय हुई, वहाँ लास्य शैली के नृत्यों की एक लंबी परंपरा है, जिसकी मूल बातें और संरचना एक सी ही होती है। मोहिनीअट्टम नृत्य परंपरा का सबसे पहला प्रमाण केरल के मंदिर की मूर्तियों में मिलता है। 11वीं शताब्दी के त्रिकोदिथानम के विष्णु मंदिर और किदंगुर सुब्रमण्य मंदिर में मोहिनीअट्टम मुद्रा में महिला नर्तकियों की कई मूर्तियां हैं। 12वीं शताब्दी के बाद के लेख बताते हैं कि मलयालम कवियों और नाटककारों में लस्या विषय शामिल थे। 16वीं शताब्दी में नंबूतिरी द्वारा रचित व्यवहारमाला में मोहिनीअट्टम शब्द का प्रयोग देखा जा सकता है । 17वीं शताब्दी के एक अन्य लेख, गोशा यात्रा में भी इस शब्द का उल्लेख है। 18वीं सदी में केरल में रचित नाट्य शास्त्र पर आधारित बलराम भारतम में भी मोहिनी नटना सहित कई शास्त्रीय नृत्य शैलियों का उल्लेख है। १८वीं और १९वीं शताब्दी में मोहिनी अट्टम तथा भरतनाट्यम को राजकीय परिवारों का समर्थन और प्रोत्साहन मिला जिससे ये कलाएं विकसित हुई। इस शास्त्रीय नृत्य को व्यवस्थित करने में राजा स्वाति थिरूनल रमा वर्मा का बहुत बड़ा हाथ है। वे खुद एक कवि, और संगीतकार भी थे। 19वीं शताब्दी में मोहिनीअट्टम नृत्य विवाह के तीन संस्कारों का हिस्सा था। वे थली-केट्टु-कल्याणम (विवाह सूत्र-विवाह), तिरंडुकल्याणम (मासिक धर्म विवाह), और संबंधम (शादी जैसे अनुष्ठान या अनौपचारिक गठबंधन) थे। इसने उस समय समाज के भीतर जातियों के सामाजिक संतुलन को बनाए रखने का काम किया। मोहिनीअट्टम के ऊपर अंग्रेज़ों द्वारा ...