• Kyaa aap jante hain? / Do you know?

  • Auteur(s): Asha Gaur
  • Podcast

Kyaa aap jante hain? / Do you know?

Auteur(s): Asha Gaur
  • Résumé

  • "Kyaa aap jante hain?" Explores the stories which open our minds to the art, culture, architecture, history/herstory and reasoning behind various beliefs we follow. The podcast celebrates everything Indian. Through this podcast, I wish to seek answers to questions that have bothered me and share them with the listeners. India is a land of diversity in every way. Let's explore this diversity with some beautiful stories.

    Copyright 2023 Asha Gaur
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Épisodes
  • भारत के शास्त्रीय नृत्य - भाग- 8 (सत्रीया) | Classical Dance forms of India – Part 8 (Satriya)
    Mar 17 2023
    सत्रीया: सत्रीया नृत्य आसाम में जन्मी शास्त्रीय नृत्य की एक विधा है जिसकी रचना संत श्री शंकरदेव ने की थी। इस नृत्य के माध्यम से वे अंकिया नाट का प्रदर्शन किया करते थे। अंकिया नाट यानि वन एक्ट प्ले। ये उनके द्वारा रचित एक प्रकार का असमिया एकाकी नाटक है जो मुख्य रूप से सत्रों में प्रदर्शित किए जाता था। जैसे-जैसे इन प्रदर्शनों का विस्तार हुआ, इस नृत्य शैली को सत्रीया कहा जाने लगा क्यूंकि इसे आसाम के मठों यानि सत्रों में किया जाता था। भारत के इतिहास में तेरहवीं, चौदहवीं और पद्रहवीं शताब्दी को भक्ति काल की तरह देखा जाता है जहाँ प्रभु भक्ति का प्रचार किया गया। प्रभु भक्ति के साधन सीमित नहीं हो सकते और इसी भावना के साथ नृत्य और संगीत को भी इश्वर भक्ति का एक साधन माना गया और उनका प्रचार किया गया। असम का नृत्य और कला में एक लंबा इतिहास रहा है। शैववाद और शक्तिवाद परंपराओं से जुड़े ताम्रपत्रों से इस बात की पुष्टि होती है। आसाम में प्राचीन काल से ही नृत्य और गायन की परम्परा चली आ रही है और सत्रिया में इन्हीं लोक गीतों और नृत्यों का प्रभाव दिखता है। सत्रीया को अपनी मूल मुद्राएं और पदचारण इन्हीं लोक नृत्यों से मिली हैं जैसे की ओजपाली, देवदासी नृत्य, बोडो और बीहू। ओजपाली और देवदासी नृत्य, दोनों ही लोकनृत्य वैष्णववाद से जुड़े हैं जिनमें से ओजपाली हमेशा से ही ज़्यादा लोकप्रिय रहा है। ओजपाली के दो प्रकार हैं, सुखनन्नी ओजपाली जो शक्तिवाद यानि देवी की उपासना से जुड़ा हैं और व्याह गोय ओजपाली जो कि भगवान् विष्णु की भक्ति से जुड़ा हुआ है। व्याह गोय ओजपाली को शंकरदेव ने मठों में करवाना शुरू किया और धीरे- धीरे सुधरते सुधरते इस नृत्य ने आज के सत्रीया नृत्य का रूप ले लिया। सत्रीया नृत्य पहले केवल मठों में, वहाँ पर रहने वाले सन्यासियों या मॉन्क्स के द्वारा ही किया जाता था जिन्हें भोकोट कहते थे। इन प्रदर्शनों में वे खुद गाते थे और वाद्यों को भी खुद ही बजाते थे। समय के साथ इस नृत्य की शिक्षा स्त्रियों को भी दी जाने लगी। सत्रीया नृत्य शैली को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है; पौराशिक भंगी, जो कि पुरशों की शैली है और 'स्त्री भंगी', जो स्त्री शैली है। इस नृत्य की पोषाक पाट सिल्क से बनी होती है और नृत्यों का मंचन आसाम के बोरगीतों पर ...
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    6 min
  • भारत के शास्त्रीय नृत्य - भाग- 7 (मणिपुरी) | Classical Dance forms of India – Part 7 (Manipuri)
    Mar 17 2023
    मणिपुरी: मणिपुरी नृत्य भारत के आठ प्रमुख शास्त्रीय नृत्यों में से एक है। इस नृत्य का नाम भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर के नाम पर रखा गया है, जहाँ से इसकी शुरुवात हुई थी, लेकिन अन्य शस्त्रीय नृत्यों की तरह, इसकी जड़ें भी भरत मुनि के 'नाट्य शास्त्र' में मिलती हैं। इस नृत्य में भारतीय और दक्षिण पूर्व एशियाई संस्कृति का मिश्रण स्पष्ट दिखाई देता है। इस जगह की सदियों पुरानी नृत्य परंपरा भारतीय महाकाव्यों, 'रामायण' और 'महाभारत' से प्रकट होती है, जहां मणिपुर के मूल नृत्य विशेषज्ञों को 'गंधर्व' कहा जाता है। परंपरागत रूप से मणिपुरी लोग खुद को 'गंधर्व' मानते हैं जो देवों या देवताओं से जुड़े गायक, नर्तक और संगीतकार थे जिनका वैदिक ग्रंथों में उल्लेख भी मिलता है। प्रारंभिक मध्ययुगीन काल के दक्षिणपूर्व एशियाई मंदिरों में नर्तकों के रूप में 'गंधर्वों' की मूर्तियां देखी जा सकती हैं। प्राचीन मणिपुरी ग्रंथों में इस क्षेत्र का उल्लेख 'गंधर्व-देश' के रूप में भी किया गया है। इसे विशेष रूप से वैष्णववाद पर आधारित विषयों और 'रास लीला' के शानदार प्रदर्शन के लिए जाना जाता है। इस नृत्य कला के माध्यम से अन्य विषयों जैसे शक्तिवाद और शैववाद का प्रदर्शन भी होता है। इसके आलावा मणिपुरी त्योहार 'लाई हरोबा' के दौरान उमंग लाई नामक वन देवताओं से जुड़ी कथाओं का मंचन भी किया जाता है। परंपरा के अनुसार इस नृत्य कला का ज्ञान मौखिक है और महिलाओं को मौखिक रूप से दिया जाता है जो मणिपुर में 'चिंगखेरोल' के नाम से प्रसिद्ध है। समय के साथ प्राचीन मणिपुरी ग्रंथ धीरे-धीरे नष्ट हो गए, पर मणिपुरी की मौखिक परंपरा के प्रमाण 18वीं शताब्दी की शुरुआत के अभिलेखों में, और एशियाई पांडुलिपियों में भी पाए गए हैं। सन 1717 में राजा गरीब निवाज ने भक्ति वैष्णववाद को अपनाया, जिसमें भगवान कृष्ण से जुड़े विषयों पर आधारित गायन और नृत्य सहित धार्मिक प्रदर्शन कलाओं का उच्चारण होता था। मणिपुर में 'रास लीला' का आविष्कार और वैष्णववाद का प्रसार करने का श्रेय राजर्षि भाग्य चंद्र को जाता है। इस नृत्य शैली का प्रदर्शन और मूल नाटक विभिन्न मौसमों के हिसाब से होता है। मणिपुरी नृत्य अगस्त से नवंबर तक तीन बार शरद ऋतु में, और एक बार वसंत ऋतु में मार्च-अप्रैल के आसपास किया जाता है। सभी ...
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    6 min
  • भारत के शास्त्रीय नृत्य - भाग- 6 (ओड़िसी) | Classical Dance forms of India – Part 6 (Odisi)
    Mar 17 2023
    ओड़िसी : ओड़िसी नृत्य भारत की आठ प्रमुख शास्त्रीय नृत्य शैलियों में से एक है और इसका जन्म भारत के पूर्व में स्थित राज्य ओडिशा में हुआ था। यह एक सौम्य और गीतात्मक नृत्य शैली है जिसे प्रेम का नृत्य माना जाता है। यह मानव जीवन में छिपी दिव्यता को छूता है। यह जीवन की छोटी-छोटी बातों बहुत खूबसूरती से छूता है। ओड़िसी नृत्य का उल्लेख ब्रह्मेश्वर मन्दिर के शिलालेखों में देखा जा सकता है तथा वहाँ की मूर्तियों में ओड़िसी नृत्यांगनाओं की छवि भी देखी जा सकती है। इसके आलावा भुवनेश्वर के राजरानी और वेंकटेश मंदिर, पुरी के जगन्नाथ मंदिर और कोणार्क के सूर्या मंदिर में भी ओड़िसी नृत्य से जुड़े प्रमाण मिलते हैं। इतिहास के जानकारों के हिसाब से ओड़िसी मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता था। यह ओड़िसा के प्राचीन कवियों द्वारा ओडिसी संगीत के रागों और तालों के अनुसार लिखे गीतों के पर किया जाता है। ओडिसी नृत्य के माध्यम से नर्तक वैष्णववाद की धार्मिक कहानियों और विचारों को व्यक्त करता है। ओडिसी प्रदर्शनों के माध्यम से अन्य विचार धाराओं को भी अभिव्यक्त किया जाता है जैसे कि हिंदू देवताओं शिव और सूर्य से संबंधित कथाएं तथा देवी के शक्ति रूप की कथाओं का प्रदर्शन। ओडिसी की झलक ओधरा मगध नामक नृत्य शैली में देखी जा सकती है। इसका उल्लेख शास्त्रीय नृत्य की दक्षिण-पूर्वी शैली, और नाट्यशास्त्र में भी किया गया है। ओड़िसी एक बहुत ही शैलीबद्ध नृत्य है। पारंपरिक रूप से यह एक नृत्य-नाटक शैली है, जहाँ कलाकार और संगीतकार प्रतीकात्मक वेशभूषा, नृत्य और अभिनय के माध्यम से एक कहानी, आध्यात्मिक संदेश या हिंदू ग्रंथों के विभिन्न प्रसंगों का प्रदर्शन करते हैं। इस नृत्य की मुद्राएं प्राचीन साहित्य में वर्णित हैं। अभिनय के लिए शास्त्रीय ओडिया साहित्य, और पारंपरिक ओडिसी संगीत पर आधारित गीत गोविंद का उपयोग किया जाता है। इसमें दिखने वाली भंग, द्विभंग, त्रिभंग तथा पदचारण की मुद्राएं भरतनाट्यम से काफी मिलती हैं। एक ओड़िसी नृत्य प्रदर्शन में मंगलाचरण, नृत्त (शुद्ध नृत्य), नृत्य (अभिव्यक्ति युक्त नृत्य), नाट्य (नृत्यनाटिका) और मोक्ष यानि नृत्य अंतिम भाग या क्लाइमैक्स जिसे आत्मा की स्वतंत्रता और आध्यात्मिक मुक्ति भी कहा जा सकता है, शामिल होते हैं। ...
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