कत्थक: कथक किसी एक राज्य से जुड़ा नहीं है और उत्तर भारत के कई राज्यों में देखा जा सकता है। कत्थक शब्द में छुपा है शब्द कथा, और इसका जन्म कहानी सुनाने की कला से जुड़ा है। इसी कला को और प्रभावशाली बनाने के लिए विभिन्न भाव भंगिमाओं का इस्तेमाल किया जाने लगा और धीरे-धीरे इसमें ताल, संगीत और नृत्य जुड़ गया। इसकी जड़ें रासलीला में पाई जाती हैं जहाँ कृष्ण लीला और भगवत पुराण के अध्यायों का नृत्य नाटिका के रूप में मंचन किया जाता था। भक्ति से जुडी इस कला का अपना इतिहास है। भक्ति काल में पनपी इस नृत्य कला को मुगलों ने भी खूब प्रोत्साहित किया परन्तु इसमें से भक्ति की जगह कामुकता ने ले ली और मंदिरों से निकलकर यह नृत्य दरबारों तक पहुँच गया। मुगलों के पतन के साथ कत्थक भी गुम होने लगा। अठारहवीं शताब्दी में अवध के अंतिम नवाब, वाजिद अली शाह ने कत्थक को समाज में सम्मान दिलाया। भरतनाट्यम: भरतनाट्यम भारत की सबसे पुरानी शास्त्रीय नृत्य परंपरा है जिसमें नृत्यांगनाएं वेदों, पुराणों,रामायण, महाभारत और खासकर शिव पुराण की कथाओं को आकर्षक भाव भंगिमाओं और मुद्राओं के माध्यम से प्रदर्शित करते हैं। यह नृत्य कला लगभग दो हज़ार साल पुरानी है। यह तमिलनाड़ू का राजकीय नृत्य है। भरतनाट्यम को मंदिरों में ही किया जाता था। कई पौराणिक मंदिरों में बनी प्रतिमाएं भरतनाट्यम की मुद्राओं से मिलती हैं जैसे सातवीं शताब्दी में बनी बादामी के गुफा मंदिरों में मिली नटराज की मूर्ति। बीसवीं शताब्दी में यह नृत्य मंदिरों से निकलकर भारत के अन्य राज्यों और साथ ही साथ विदेशों तक भी पहुँच गया। स्वतंत्रता के उपरान्त इस नृत्य को खूब ख्याति मिली। भरतनाट्यम को भारत के बैले के रूप में जाना जाने लगा। भारत के बाहर यह नृत्य कला अमेरिका, यूरोप, कैनेडा, खाड़ी देशों, बांग्लादेश और सिंगापूर में भी सिखाया जाता है। विदेशों में रह रहे भारतीयों के लिए यह और अन्य शास्त्रीय नृत्य कलाएं अपनी संस्कृति से जुड़े रहने एक जरिया है और आपसी मेल-मिलाप का बहाना भी। कथकली: कथकली केरल राज्य की एक प्राचीन नृत्य कला है जिसे इसकी भव्य वेशभूषा और अद्भुत श्रृंगार के लिए जाना जाता है। कथकली का अर्थ है कथा का नाट्य रूपांतरण। कथ का अर्थ है कहानी, और कली का मतलब है प्रदर्शन। कथकली का जन्म 17वीं ...