• Shri Bhagavad Gita Chapter 17 | श्री भगवद गीता अध्याय 17 | श्लोक 8
    Feb 4 2025

    यह श्लोक श्री भगवद गीता के 17.8 का अंश है। इसमें भगवान श्री कृष्ण सात्त्विक आहार के लक्षणों का वर्णन करते हुए कहते हैं:

    "सात्त्विक आहार वे होते हैं जो आयु, सत्त्व, बल, आरोग्य, सुख और प्रेम को बढ़ाते हैं। ऐसे आहार रसीले, स्निग्ध (मुलायम), स्थिर (पाचन में हल्के) और हृदय को प्रसन्न करने वाले होते हैं। ये आहार सात्त्विक प्रवृत्तियों के अनुरूप होते हैं।"

    भगवान श्री कृष्ण इस श्लोक में सात्त्विक आहार के गुणों का विस्तार से वर्णन कर रहे हैं, जो न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होते हैं। ये आहार व्यक्ति को शांति, संतुलन और सुख प्रदान करते हैं।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 17 | श्री भगवद गीता अध्याय 17 | श्लोक 7
    Feb 4 2025

    यह श्लोक श्री भगवद गीता के 17.7 का अंश है। इसमें भगवान श्री कृष्ण कहते हैं:

    "सभी प्राणियों का आहार तीन प्रकार का होता है, जो उनके स्वभाव और गुणों पर निर्भर करता है। इसी प्रकार यज्ञ, तपस्या और दान भी तीन प्रकार के होते हैं। अब तुम इनके भेद को सुनो।"

    भगवान श्री कृष्ण यहाँ यह बता रहे हैं कि जैसे आहार, यज्ञ, तपस्या और दान के विभिन्न प्रकार होते हैं, वैसे ही ये व्यक्ति के गुणों के अनुसार भिन्न होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की आदतें, आस्थाएँ और आहार उसके मानसिक और आत्मिक गुणों से प्रभावित होती हैं। इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण इन विभिन्न रूपों का विवरण देने वाले हैं।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 17 | श्री भगवद गीता अध्याय 17 | श्लोक 6
    Feb 3 2025

    यह श्लोक श्री भगवद गीता के 17.6 का अंश है। इसमें भगवान श्री कृष्ण कहते हैं:

    "जो लोग अपने शरीर में स्थित भूतों (जीवों) को, बिना विवेक और बिना चेतना के, प्रकोपित करते हैं, और जो मुझे, जो शरीर के अंदर स्थित हूँ, नहीं पहचानते, वे असुर प्रवृत्तियों वाले होते हैं।"

    भगवान श्री कृष्ण यहाँ उन लोगों का वर्णन कर रहे हैं जो अपने शरीर और मन को अविवेकपूर्ण रूप से नियंत्रित करते हैं और अपनी इच्छाओं को पूरी करने के लिए दूसरों की उपेक्षा करते हैं। वे भगवान के वास्तविक रूप को नहीं पहचानते और असुर प्रवृत्तियों में लिप्त रहते हैं। यह श्लोक यह बताता है कि असुर प्रवृत्तियाँ व्यक्ति के अंदर की चेतना और विवेक का हरण करती हैं।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 17 | श्री भगवद गीता अध्याय 17 | श्लोक 5
    Feb 3 2025

    यह श्लोक श्री भगवद गीता के 17.5 का अंश है। इसमें भगवान श्री कृष्ण कहते हैं:

    "वे लोग जो शास्त्रों के अनुसार नहीं, बल्कि घोर और अनुचित तपस्या करते हैं, जो दंभ और अहंकार से जुड़े होते हैं, और जो काम, राग और बल के प्रभाव में तपस्या करते हैं, वे ऐसे लोग होते हैं।"

    भगवान श्री कृष्ण यहाँ उन व्यक्तियों के बारे में बता रहे हैं जो बिना सही मार्गदर्शन और शास्त्रों के नियमों के अनुसार तपस्या नहीं करते, बल्कि अहंकार, दंभ और वासनाओं से प्रेरित होकर कठिन तपस्या करते हैं। इस प्रकार की तपस्या सही नहीं मानी जाती और यह उनके लिए हानिकारक हो सकती है।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 17 | श्री भगवद गीता अध्याय 17 | श्लोक 4
    Feb 2 2025

    यह श्लोक श्री भगवद गीता के 17.4 का अंश है। इसमें भगवान श्री कृष्ण कहते हैं:

    "सात्त्विक लोग देवताओं की पूजा करते हैं, राजसी लोग यक्षों और रक्षसों की पूजा करते हैं, और तामसी लोग प्रेतों, भूतों और अन्य राक्षसी शक्तियों की पूजा करते हैं।"

    भगवान श्री कृष्ण यहाँ यह समझा रहे हैं कि श्रद्धा के तीन प्रकार के व्यक्तियों की पूजा भी अलग-अलग होती है। सात्त्विक लोग दिव्य और उच्च शक्तियों की पूजा करते हैं, जबकि राजसी और तामसी लोग नकारात्मक या भूतपूर्व शक्तियों की पूजा करते हैं। यह श्लोक दर्शाता है कि श्रद्धा का प्रकार और पूजा की दिशा व्यक्ति के गुणों के अनुसार निर्धारित होती है।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 17 | श्री भगवद गीता अध्याय 17 | श्लोक 3
    Feb 1 2025

    यह श्लोक श्री भगवद गीता के 17.3 का अंश है। इसमें भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं:

    "हे भारत! प्रत्येक व्यक्ति की श्रद्धा उसके सत्त्व के अनुसार होती है। व्यक्ति जिस प्रकार की श्रद्धा रखता है, वही उसकी प्रकृति का निर्धारण करती है।"

    भगवान श्री कृष्ण यह बताते हैं कि एक व्यक्ति की श्रद्धा उसके मानसिक गुणों और स्वभाव के अनुसार बदलती है। इस श्लोक से यह भी स्पष्ट होता है कि किसी व्यक्ति का आस्थावान दृष्टिकोण और जीवन में विश्वास उसके भीतर के सत्त्व, रजस और तमस गुणों से प्रभावित होते हैं।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 17 | श्री भगवद गीता अध्याय 17 | श्लोक 2
    Jan 31 2025

    यह श्लोक श्री भगवद गीता के 17.2 का अंश है। इसमें भगवान श्री कृष्ण कहते हैं:

    "हे अर्जुन! तीन प्रकार की श्रद्धा होती है, जो प्रत्येक जीव के स्वभाव के अनुसार होती है: सात्त्विकी, राजसी और तामसी। अब तुम इस श्रद्धा के प्रकारों को सुनो।"

    भगवान श्री कृष्ण यहाँ यह समझा रहे हैं कि श्रद्धा का प्रकार व्यक्ति के स्वभाव और गुणों पर निर्भर करता है। श्रद्धा का प्रभाव उस व्यक्ति के मानसिक और आत्मिक विकास पर पड़ता है, जो उसके गुणों और प्रवृत्तियों के अनुरूप होती है। भगवान श्री कृष्ण आगे इन तीन प्रकार की श्रद्धाओं के बारे में विस्तृत रूप से बताने वाले हैं।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 17 | श्री भगवद गीता अध्याय 17 | श्लोक 1
    Dec 22 2024

    "शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विताः | श्री कृष्ण के शास्त्र संबंधी संदेश"

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    इस वीडियो में हम श्री कृष्ण के एक महत्वपूर्ण श्लोक का विश्लेषण करेंगे, जिसमें वह कहते हैं कि जो लोग शास्त्रविधि को त्यागकर श्रद्धा के साथ यजन करते हैं, उनकी निष्ठा का स्तर क्या होता है। श्री कृष्ण के इस संदेश को समझते हुए हम जानेंगे कि सत्त्व, रजस और तमस के गुण किस प्रकार प्रभावित करते हैं हमारी भक्ति और धार्मिक क्रियाएँ। इस वीडियो के माध्यम से हम शास्त्रों की महत्ता और सही विधि को समझने का प्रयास करेंगे।

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