Épisodes

  • कारवां गुजर गया
    May 11 2023
    स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
    लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
    और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।
    कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।

    नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई
    पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई
    पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई
    चाह तो निकल सकी न पर उमर निकल गई

    गीत अश्क बन गए छंद हो दफन गए
    साथ के सभी दिऐ धुआँ पहन पहन गए
    और हम झुके-झुके मोड़ पर रुके-रुके
    उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
    कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
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    3 min
  • जीवन नही मारा करता है
    May 10 2023
    छिप-छिप अश्रु बहाने वालों !
    मोती व्यर्थ बहाने वालों !
    कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है।

    सपना क्या है? नयन सेज पर
    सोया हुआ आँख का पानी,
    और टूटना है उसका ज्यों
    जागे कच्ची नींद जवानी
    गीली उमर बनाने वालों।
    डूबे बिना नहाने वालों !
    कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है।

    माला बिखर गयी तो क्या है
    ख़ुद ही हल हो गई समस्या,
    आँसू गर नीलाम हुए तो
    समझो पूरी हुई तपस्या,
    रूठे दिवस मनाने वालों !
    फटी कमीज़
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    3 min
  • \"सत्य ही तो, जा चुके सब लोग हैं दूर ईष्या-द्वेष, हाहाकार से ! मर गये जो, वे नहीं सुनते इसे ...
    May 10 2023
    \"सत्य ही तो, जा चुके सब लोग हैं दूर ईष्या-द्वेष, हाहाकार से ! मर गये जो, वे नहीं सुनते इसे; हर्ष क स्वर जीवितों का व्यंग्य है। \" स्वप्न-सा देखा, सुयोधन कह रहा- \"ओ युधिष्ठिर, सिन्धु के हम पार हैं; तुम चिढाने के लिए जो कुछ कहो, किन्तु, कोई बात हम सुनते नहीं \"हम वहाँ पर हैं, महाभारत जहाँ दीखता है स्वप्न अन्तःशून्य-सा, जो घटित-सा तो कभी लगता, मगर, अर्थ जिसका अब न कोई याद है \"आ गये हम पार, तुम उस पार हो; यह पराजय या कि जय किसकी हुई ? व्यंग्य, पश्चाताप, अन्तर्दाह का अब विजय-उपहार भोगो चैन से हर्ष का स्वर घूमता निस्सार-सा लड़खड़ाता मर रहा कुरुक्षेत्र में, औ\' युधिष्ठिर सुन रहे अव्यक्त-सा एक रव मन का कि व्यापक शून्य का
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  • कवि का माथा ही है अंबर , कवि के पद से पाताल बनी
    May 8 2023
    कवि का माथा ही है अंबर , कवि के पद से पाताल बनी । कवि के अधरो की लाली से रंगरूप उषा का काल बना । कवि रोया सावन घन उमड़ी मारू की चीर संचित प्यास बुझी , रिमझिम आंसू की बूंदों में करुणा को भी आवास मिला कवि हंसे फूल हंस पड़े और हीरक हिम को भी हास मिला , पतझड़ के सूखे पत्तों को मुस्काता पतवास मिला । कवि के अंतर में आग भरी कवि के आंखो में पानी है हम कवि है कवि की जीवन की दुनिया से अलग कहानी है।
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    1 min